Aurangzeb son History : आखिर क्यों दिया औरंगजेब ने अपने बेटे सुल्तान महमूद को जहर ?

Aurangzeb son History :- फ्रांस्वा बर्नियर, एक फ्रांसीसी यात्री, मुगल बादशाह शाहजहां के अंतिम दिनों में भारत आया था. उसने मुगलों के दरबार में रहते हुए जो देखा और सुना, उसे अपनी किताब 'ट्रैवल्स इन द मुगल एंपायर' में लिखा। आइए सुनते हैं मुगलों की कहानी, बर्नियर!
Aurangzeb son History :- मुग़ल बादशाह शाहजहां के बेटों के बीच तख्त या ताबूत की जंग लगभग हो चुकी थी। दाराशिकोह ने 1658 में सामूगढ़ की लड़ाई में पराजय के बाद पहले आगरा लौटा, फिर दिल्ली गया और फिर वहां से लाहौर चला गया। तब औरंगजेब अपने सबसे छोटे भाई मुराद बख्श के साथ फतह का झंडा लेकर आगरा पहुंचा।
औरंगजेब और मुराद बख्श तीन-चार दिन बाद सामूगढ़ की जंग के बाद शहर के गेट से बाहर एक बाग में पहुंचे, जैसा कि बर्नियर ने लिखा है। क़िले से कुछ दूर था। बाद में औरंगजेब ने अपने एक विश्वसनीय हिजड़े के हाथों शाहजहां को पैगाम भेजा। औरंगजेब ने बादशाह से वफादारी की कसमें खाईं और कहा कि दारा की साजिशों के चलते जो हुआ, उस पर उसे बहुत दुःख है।
औरंगजेब ने कहा कि वह बादशाह की सेहत सुधरने से बहुत खुश था और वह आगरा आया था ताकि वह उनका आदेश सुन सके और उनकी आज्ञा मान सके।शाहजहां ने अपने बेटे की बातों पर भरोसा नहीं किया क्योंकि वह औरंगजेब के दोमुंहेपन और सत्ता की ललक से परिचित था। औरंगजेब को शाहजहां ने अपने विश्वसनीय हिजड़े के हाथों पैगाम भेजा। उन्होंने कहा कि वह जानता है कि दारा अयोग्य नहीं है और उसके साथ बुरा व्यवहार करता है। बादशाह ने कहा कि अब देर नहीं करना चाहिए और अपने पिता से जल्दी मिलना चाहिए।
औरंगजेब ने आगरा के क़िले में जाने की हिम्मत नहीं की। 'शहजादे को भी शाहजहां पर भरोसा नहीं था,' बर्नियर लिखता है। उसे पता था कि बादशाह की निगरानी में उसकी बड़ी बहन जहांआरा हर समय शाहजहां के साथ रहती है। उसे डर था कि जहांआरा ने यह पैगाम भेजा होगा और अगर वह क़िले में गया तो जहांआरा की सुरक्षा करने वाली लंबी और तगड़ी तातार औरतें उस पर हमला कर देंगी।औरंगजेब ने क़िले में जाने का दिन टाल दिया। कई दिन इसी तरह गुजर गए। उस समय, वह अपने भरोसेमंद उमरा के साथ विचार कर रहा था कि कैसे क़िले में घुस जाए। यह सब ऐसा ही चल रहा था कि एक दिन अचानक शोर हुआ।
क़िले को औरंगजेब के बड़े बेटे सुल्तान महमूद ने अपने हाथ में ले लिया।'यह उत्साही नौजवान क़िले के दरवाजे पर गया,' बर्नियर लिखता है। पहरेदारों को बताया कि वह औरंगजेब का पैगाम लाया है और बादशाह से मिलना चाहता है। उन्होंने इतना कहा और पहरेदारों के पास गिर पड़ा। उसे संभालने में पहरेदार जुट गए। थोड़ी दूर खड़े सुल्तान महमूद के साथी तुरंत वहां पहुंच गए और पहरेदारों को पकड़ लिया। वे क़िले के भीतर घुस गए और वहाँ अपनी संपत्ति जमा कर ली।शाहजहां चौंक गया।
उसने सोचा कि उसने दूसरों के लिए जो जाल बनाया था, उसमें खुद भी फंस गया था और अब किला औरंगजेब के हाथ में था। बताया जाता है कि सुल्तान महमूद को बादशाह ने पत्र भेजा। उसने अपने ताज और कुरान की कसम खाकर कहा कि वह उसे बादशाह बना देगा, बशर्ते वह अभी उसका साथ दे। राजा ने लिखा कि आप मेरे पास आ सकते हैं। मैं जेल से छुटकारा पाओ। आपको जन्नत की दुआएं मिलेंगी। इस फानी दुनिया में रहने तक आपका नाम याद किया जाएगा।बर्नियर लिखता है, "अगर सुल्तान महमूद ने इस प्रस्ताव को मानने का साहस दिखाया होता, तो पूरी संभावना थी कि वह अपने पिता की जगह वही बादशाह बनता।"
शाहजहां अभी भी अमीर-उमरा पर काफी प्रभावी था। औरंगजेब का साहस टूट जाता अगर शाहजहां सेना का नेतृत्व लेता क्योंकि ऐसी स्थिति में उसे यह डर भी होता कि मुराद बख्श भी उसका साथ छोड़ सकता है।सुल्तान महमूद ने शाहजहां से बात नहीं की और उसके कमरे में भी नहीं गया। उसने कहा कि औरंगजेब को पूरी सुरक्षा से क़िले में प्रवेश करने के लिए हर गेट की चाबियां दी जाएं। शाहजहां उसे मनाता रहा, लेकिन सुल्तान महमूद ने मना नहीं किया, तो उसे दो दिन बाद क़िले की चाबियां दी गईं।
औरंगजेब आगरा के क़िले में पहुंचा।औरंगजेब ने इसके बाद शाह शुजा, अपने तीसरे भाई, को बुलाया। 1659 में, दक्कन के मीर जुमला की सेना की मदद से उसने खजुवा की लड़ाई में शाह शुजा को हराया। शाह शुजा बंगाल चला गया। औरंगजेब ने दारा का पीछा करने का निर्णय लिया। लेकिन उसे भी डर था कि उसके पीछे कोई आगरा पर कब्जा न कर ले।
वह अपने करीबी लोगों से भी डरता था। मीर जुमला उनमें से था। औरंगजेब को दक्कन में गोलकुंडा पर हमला करने और वहां का खजाना लेने में जुमला ने ही मदद की थी। सुल्तान महमूद, औरंगजेब का बड़ा बेटा, दूसरा करीबी था। औरंगजेब को पता था कि उसके ये दो करीबी लोग उसकी बड़ी मदद कर सकते हैं, लेकिन वह यह भी जानता था कि इतने शक्तिशाली लोगों का मन बदल भी सकता है, जैसा कि बर्नियर लिखता है। औरंगजेब ने देखा कि सुल्तान महमूद ने उससे पूछे बिना आगरा के क़िले पर कब्जा कर लिया था।