Vijayanagara: मुस्लिम शासन के तहत हिंदू साम्राज्य के 200 साल, 'दक्षिण के रोम' विजयनगर की कहानी

 
Vijayanagara: मुस्लिम शासन के तहत हिंदू साम्राज्य के 200 साल, 'दक्षिण के रोम' विजयनगर की कहानी

Vijayanagara:- 1336 ई. में, हरिहर और बुक्का ने विजयनगर साम्राज्य बनाया था। 15वीं सदी में श्रीकृष्ण देवराय ने इस धनी साम्राज्य को नियंत्रित किया। विजयनगर की शुरुआत इस समय से होती है। तेनालीराम उनके दरबार में थे। 1565 के तालीकोट युद्ध में मुस्लिम शासकों की पराजय के बाद विजयनगर और हंपी इतिहास के स्मारकों में शामिल हो गए।

यह वह समय था जब मुस्लिम शासकों ने दिल्ली से लेकर उत्तर भारत को एकछत्र नियंत्रण किया था। उस समय, दक्षिण भारत में एक हिंदू साम्राज्य था, जिसे दुनिया भर ने अपमानित किया था। हम विजयनगर साम्राज्य की बात कर रहे हैं। इटली, रूस और पुर्तगाल से आए पर्यटकों ने तुंगभद्रा नदी के किनारे बसे इस राज्य की सुंदरता और सुंदरता पर मुहर लगाई है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तुंगभद्रा नदी के किनारे 108 फीट ऊंची भगवान राम की प्रतिमा का उद्घाटन किया है। 1800 में, एक अंग्रेज खोजकर्ता कॉलिन मैकेन्जी ने विजयनगर की राजधानी हम्पी के अवशेषों से दुनिया को रूबरू कराया, जो हर किसी को आश्चर्यचकित कर दिया।

पहले विजयनगर साम्राज्य की स्थापना कैसे हुई? 13वीं सदी की कहानी है। विजयनगर की स्थापना से पहले, दो योद्धा भाई, हरिहर और बुक्का, काकतीय राजवंश में सामंत थे। इन्हें बाद में कांपिली राज्य में मंत्री बनाया गया था। दिल्ली सल्तनत में मोहम्मद बिन तुगलक का दौर था। तुगलक के शत्रु बहाउद्दीन को कांपिली राज्य ने आश्रय दिया था। तुगलक ने फिर कांपिली पर हमला कर दिया। बुक्का और हरिहर दोनों को पकड़कर दिल्ली लाया गया। दोनों भाइयों ने इस्लाम धर्म अपनाया। दिल्ली दरबार ने दोनों भाइयों को दक्षिण भारत भेजा ताकि वे होयसलों के विद्रोह को रोक सकें। यहां गुरु माधव विद्यारण्य से मिले तो दोनों भाई इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म में लौट आए। 1336 ईसवी में, हरिहर और बुक्का ने अपने गुरु की प्रेरणा से तुंगभद्रा नदी के तट पर विजयनगर साम्राज्य बनाया। इसका उद्देश्य मुस्लिम राजाओं के खिलाफ एक मजबूत हिंदू राज्य बनाना था। तुगलक साम्राज्य के समकालीन दक्षिण भारत के इतिहास में यहीं से संगम शासन की शुरुआत हुई।

हंपी, चार राजवंशों ने राज किया

विजयनगर ने 1336 में स्थापित होने से लेकर लगभग 200 साल तक दक्षिण भारत में प्रभुत्व किया। इस साम्राज्य ने ओडिशा, आंध्र और कर्नाटक से लेकर तमिलनाडु और श्रीलंका के कुछ हिस्सों को शामिल किया था। यहां चार राजवंशों ने चौदहवीं से सत्रहवीं शताब्दी तक राज किया। संगम राजवंश (1336–1485 ईसवी), सालुव (1485-1505 ईसवी), तुलुव (1505-1570 ईसवी) और अराविदु (1570–1649 ईसवी) हरिहर और बुक्का दोनों का पिता संगम था। इसलिए पहला वंश संगम वंश कहलाया। अराविदु वंश ने विजयनगर पर राज किया था। विजयनगर हम्पी (पंपा से निकला) और होसपेट को मिलाकर बनाया गया था। हंपी का नाम देवी पार्वती से लिया गया है। कन्नड़ इसे पम्पे कहते हैं।

रोम की सड़कों पर हीरे-मोती बिकते थे, जो उतना ही सुंदर था

विजयनगर में बहुत से विदेशी पर्यटक आए और अपने संस्मरणों में इसके सुंदर अतीत को बताया। 15वीं और 16वीं सदी में, इटली के व्यापारी निकोलो दे कोंटी, फारसी (अब ईरान) राजदूत अब्दुर रज्जाक, रूसी व्यापारी अफानासी निकितिन और पुर्तगाली यात्री डोमिंगो पेस ने इस शानदार साम्राज्य की प्रशंसा की है। उस समय दुनिया का सबसे अमीर शहर था, लेकिन पुर्तगाली डोमिंगो पेस ने इसका मुकाबला किया। तैमूर राजवंश के शासक ने अब्दुर रज्जाक को भारत भेजा और वह भी विजयनगर गया। Vijaynagar पर रज्जाक ने लिखा, "यह ऐसा नगर है, जैसा मैंने अपनी आंखों से पहले कभी देखा और न कभी इसकी बराबरी के किसी शहर के बारे में सुना।" यहाँ की जौहरी सड़कों पर हीरे, मोती, पन्ना और माणिक्य जैसे जेवरात बेचे जाते हैं।रज्जाक की पुस्तकें मतला अस सदाएं और मजमा उल बहरीन में विजयनगर यात्रा का उल्लेख है।

कृष्ण देवराय की शानोशौकत से फारसी राजदूत हैरान

15वीं सदी में फारस से कालीकट आए राजदूत अब्दुर रज्जाक के दस्तावेजों में विजयनगर के बारे में बहुत कुछ बताया गया है। विजयनगर के राजा कृष्ण देवराय को रज्जाक कालीकट आने की सूचना मिली। रज्जाक को देवराय ने विजयनगर जाने का न्योता दिया। कृष्ण देवराय (1509–1529 ईसवी) विजयनगर साम्राज्य का सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली शासक था। विजयनगर की यात्रा का वर्णन करते हुए रज्जाक लिखते हैं, 'विजयनगर के राजा 40 स्तम्भों वाले ऊंचे आलीशान दरबार में बैठे थे। उनके दरबार में बैठे दोनों ब्राह्मण और अन्य नुमाइंदे थे। राजा देवराय ने मोतियों का हार और चमकदार हरे साटन की पोशाक पहनी थी।'

बादशाह अकबर ने भी कृष्ण देवराय से प्रेरणा ली थी

कृष्णदेवराय के दरबार में आठ तेलुगु कवि थे। उन्हें अष्ट दिग्गज कहा जाता था। कृष्ण देवराय के जीवन से कुछ सीख लेकर मुगल सम्राट अकबर ने भी कुछ परंपराओं का पालन किया था, ऐसा कुछ इतिहासकार कहते हैं। माना जाता है कि अकबर ने बीरबल को कृष्ण देवराय से प्रेरणा लेकर अपने नवरत्नों में शामिल किया था। तेनालीराम देवराय के दरबार में सबसे बुद्धिमान व्यक्ति था। कृष्ण देवराय भी उनके प्रमुख सलाहकार थे। तेनालीराम का मूल नाम रामलिंगम था, लेकिन वे तेनाली गांव से थे, इसलिए उनको तेनालीराम भी कहा जाता था। कृष्ण देवराय कन्नड़ और तेलुगु दोनों भाषाओं में पारंगत थे। उन्होंने तेलुगु के पांच महाकाव्यों में से एक, अमुक्य माल्यद, लिखा था।

Tags